मेरे कदम आज भी उन्हीं पारंपरिक राहों पर चलते हैं, जिन पर चलकर मैं बड़ी हुई। मेरी बोली, मेरे गहने, मेरा वस्त्र—ये सब मेरे उस सफर के साथी है, जो मेरे सपनों को साकार कर रहे हैं।
तकनीक की इस दौड़ में मैंने संस्कृति को अपना सहयात्री बनाया है। मेरे व्यवसायिक लक्ष्य और मेरी परंपराएँ एक दूसरे के पूरक हैं, और मैं इस अनोखे संगम को जी रही हूँ। मैं वो मजबूत पेड़ हूँ जो अपनी जड़ों को मजबूती से पकड़े हुए है, पर अपनी शाखाओं को नवीनता की ओर ले जा रही है। मेरी इस यात्रा में मैंने सीखा है कि आगे बढ़ने के लिए पीछे देखना कितना ज़रूरी है।
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